सौ दर्द हैं इस दिल में l
दर्द जो बेजुबां हैं ,
पर फिर भी चीख कर कह रहे हैं,
कि कहा खो गया तेरा कारवां है l
तुम क्या से क्या हो गए ?
क्या तुम किसी दुराहे पर खो गए ?
क्यूं गम हो गए तुम इस भीड़ में ?
क्यूं डर कर हँसना छोड़ दिया ?
क्यूं खुल कर तू जीना भूल गया ?
ये किस बात का तुझे हर वक़्त ग़म है ?
क्यूं तेरी ये आखें नम हैं ?
क्यूँ तुझे खुद से इतना डर है ?
क्यूँ हमेशा तुझे कोई फ़िक्र है?
क्या तेरा दिल कोई मोम हो गया ?
कहा खो गया वो तेरा खुद का आसमां ?
क्यों तू अब दूसरों को देख रहा है ?
कभी खुद को एक बार देख ले ,
तू खुद को ठीक से पहचान ले l
तू वो है जैसी किसी की हस्ती भी नहीं l
तू एक आग है जो कभी थमती ही नहीं l
तो जीवन को एक "समंदर " तू बना l
नदी की तरह हर वक़्त अचंभित रहना छोड़ दे ,
और राह में जो काटें हैं उनसे डरना तू छोड़ दे l.
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