Monday, September 12, 2011

आत्मनिरीक्षण

     

सौ  दर्द  हैं  इस  दिल   में l
दर्द  जो  बेजुबां  हैं ,
पर  फिर  भी  चीख  कर  कह  रहे  हैं,
कि  कहा  खो  गया  तेरा  कारवां  है l
तुम   क्या   से   क्या    हो    गए  ?
क्या   तुम  किसी  दुराहे  पर  खो  गए ?
क्यूं गम  हो  गए  तुम   इस  भीड़  में ?
क्यूं  डर  कर   हँसना   छोड़   दिया ?
क्यूं खुल  कर  तू  जीना  भूल  गया  ?
ये   किस  बात   का   तुझे  हर  वक़्त  ग़म  है ?
क्यूं तेरी  ये   आखें  नम   हैं ?
क्यूँ   तुझे   खुद   से  इतना  डर  है ?
क्यूँ  हमेशा  तुझे  कोई  फ़िक्र  है?
क्या   तेरा  दिल  कोई  मोम हो  गया ?
कहा  खो  गया  वो  तेरा  खुद  का  आसमां ?
क्यों  तू  अब  दूसरों  को  देख  रहा  है ?
कभी  खुद  को  एक  बार  देख  ले ,
 तू  खुद  को  ठीक  से  पहचान   ले l
तू  वो  है  जैसी  किसी  की  हस्ती  भी  नहीं l
तू  एक  आग  है  जो  कभी  थमती  ही  नहीं l
तो  जीवन  को   एक  "समंदर "  तू  बना l
नदी  की  तरह  हर  वक़्त  अचंभित  रहना  छोड़   दे ,
और  राह  में  जो  काटें  हैं  उनसे  डरना  तू   छोड़   दे l.

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