Thursday, December 6, 2012

thoughts ...

A half written story I chose to forget
I`m full of regrets when the past begets
You're safely obscure somewhere , taken unaware
That there`s someone who still does care
Do you know there was a lot left to share
When you were there
and now though there`s time to spare
The feelings only bring despair .
I am left to gape and  blatantly stare .
Those eyes 'spoke' with such flair
that none other could possibly compare .
But now here`s a story  you left bare
and grief entwines with the soul at every "layer"
nevertheless the lips  will forever pray a silent prayer , a silent prayer ...

Wednesday, October 31, 2012

figments of imagination .....

एक  नज़र  हमारे   नज़रों  से  कभी -कभी  मिल  जाया  करतीं ,
आपस  में  कुछ  अनकही  बातें   हो  जाती ,
इक दिन जो करीब  सी  वो आ गयी ,
एक  चंचल  उतावलापन  हमें वो  दिखला गयी 
जैसे  वो  हमारी  ही  रह  देख  रही  थी  अब  तक  .
जैसे  कितना  कुछ  कहना  चाह  रही  हो
पर  अनजानेपन  से  कतरा  रही  हो l
वो  चुप  रहती   पर  हमें  खबरें  मिलती 
तब  क्या  होता   जब  ये  नज़रें  मिलती l
उन  नज़रों  ने  न  जाने  कितने  गीतों  को  मेरा  अपना  बनाया
कितने  धुनों  में  हमने  उनका  ख्याल  गुनगुनाया l
वो  दिन  भी  क्या  दिन  थे ,
की  हम  , हम  नहीं  थे ,
और  शायद  वो  वो  नहीं   थे ,
हर  एक  लम्हा  यादगार  था  हर  एक  लम्हा   हसीं ,
मुलाक़ात  तो  नहीं  थी , नाम  भी  अनाम  था  ,
पर  उस  अनजानेपन  से  ही  हमें  बड़ा  लगाव सा था  l
आज  यादें  वही  हैं  पर  वो  लम्हे  नहीं  हैं ,
वो  नज़रें  जाने  कहा  हैं  पर  हम  तो  वही  के  वही  हैं  !


कैसे  दो  नज़रें  मिल  जाती  है   अचानक  ही ,
और  कैसे  लोग  दूरियों   की  गहराईयों  में  कही  गुम  हो  जाते  हैं ,
 हमारी तरह  शायद  वो  भी  इसे  कोई  प्यारा  सा  ख्वाब  मानकर  ज़िन्दगी  जिए  जाते  हैं l

Thursday, August 2, 2012

description of a happy desolation !

एक पुराना मकान है गली किनारे ,
लाल स्याह रंग की एक गेट मानो कब से टिकी हो घर के अस्तित्व को जिन्दा रखे l
गेट के किनारों पर उग आई घास भी मुरझा गयी है l
घर के आउटहाउस में रखी बेंत की कुर्सियां थोड़ी टूटी हैं , धूल की एक चादर के आगोश में समां गयी हैं ,
दीवार घड़ी जो न जाने कब से रुकी हों , अब गौरैय्ये का बसेरा है जिनमें दो
छोटे बच्चे हैं , उनकी मधुर ध्वनि से अब भी कुछ रौनक है l
पंखे की ब्लेड पर कालिख और धूल की परत जम गयी है ,
रूम की दरारों में बारिश का पानी कुछ ऐसे टपकता है जैसे रूह की परतों से आंसू छलछला कर बाहर आ जाए l
कमरे के कोनों में सीलन ने कुछ अजीबोगरीब आकृतियाँ बना दी हैं ,
पानी की बूंदे रीस कर जब उनपर फैलती हैं तो ये अनजानी आकृतियाँ मानो जीवंत हो उठती हैं l
जमीन कुछ इंच नीचे धंस गयी है , शायद अकेलेपन का बोझ न सह सकी वो l
लटके हुए दरवाज़े आंधी में दीवार से टकराते हैं तो लगता है किसी को आवाज़ देकर पुकार रहे हों l

Saturday, April 28, 2012

before twilight ( Greek shore )




the light is fading
as the sun is 'gulped' by the 'Greek' horizon.
the translucent sea-waters
just turned opaque with sun`s reflection .
a color , reddish-orange  fills the entire sea,
a color smooth enough to soothe the soul .
I sit back and enjoy the  prolific scene,
the crabs ran past me and soon go unseen!
the turtles get cozy at 'home' ,
the water splashes against my feet
and tickles them into dancing to some unknown beat !
the houses stand around the shore 
as the glitter of the crimson  reflection  
from their window panes
adds to the beauty  thereof.
The children, they play some game ,
they run around with  sticks
and draw some doodles random on the ground
which  are soon to be washed away by the waters !
They are  innocent , they draw it again and again
hoping  it would stay .
the sea gulls give a final cry
the day has ended and off to home they fly .
The dim Greek  lamps are slowly lit and 
I lay down and think of thoughts untried thought fit
the reason I live , the reason I smile
I have found  all here and there`s nothing to hide !

Thursday, December 29, 2011

................

though moonlit nights ,
though starry skies
it`s all sighs
pains arise
its not a surprise
even with a tough soul inside
there`s still a lot to suffice
things don`t seem at ease
as i see the past freeze
things really don`t seem at ease
it tests you completely
there`s a lot to "believe'
there`s a lot to "deny'
as the sands of time fall by
time is a cruel mate
its makes you wait
it tests your patience
degrades your state
and fills you with an unending rage.......

Thursday, December 22, 2011

It`s strange. When you  suddenly leave , I feel I`m lost in the middle of an ocean pitch black at night .Its a blank feeling ,a  nauseated revulsion . Either I`m over expressive or I`m obsessed ! I have no clue ! I would go with the former for I`m a lot confused . This confusion is killing .

Saturday, December 10, 2011

दिल चाहता है





दिल   चाहता  है   इन   लम्हों  को   रोक  लूं  l
दिल  चाहता  है कुछ  पल  और  जी  लूं  l


दिल  चाहता  है  फिर  से  खो  जाऊं   उन  यादों  में l
वो यादें  जो  कभी  न  मिटेंगी  ,और  न  फिर  कभी  फिर  रचेंगी l


दिल   चाहता  है    तुम   सब  के   साथ   कुछ  दूर   और  चलूँ ,
कुछ  और  हस  लूं , कुछ  और  मुस्कुरा  लूं  ,
कुछ   और  किस्से  कह  लूं , कुछ  और  दिल  बहला  लूं  l


आज  हम   इस   मुकाम  पर  हैं   ,
जिसके बाद   कभी  हम  शायद  न  मिलें  l
पर  उम्मीद है  कि  यादें  सदा दिलों में  खिलती रहें l

वक़्त  तो  बहुत  ही  कठोर  है  ,यह   किसी  के  लिए   रुकता  नहीं l
पहले   है  जोड़ता  और  फिर   जुदा  करने  से   चूकता  नहीं l


आज  लगता  है  हम  किसी  चौराहे  पर  खड़े  हैं  ,
राहें   सबकी  अब  अलग  है  ,सबके  सपने  बड़े  हैं l
पर  यह  हृदय   है  जो  सबमें  सदा  जीवंत   है  , और  सब  इससे  ही तो  जुड़े  हैं I


उम्मीद  करता  हूँ   कि  तुम  हमें   न  भूलना  ,
जो   राह  में   कभी  तुम  खुद  को   अकेला   पाना ,
तो  छोटी  सी ये  मेरी  पंक्तियाँ   ज़रूर  पढ़ना l


सोचना  कि  दूर  कहीं  तुम्हारा  एक  दोस्त  है  ,
जिसके  हाथ  तुम्हारे  लिए  सदा  है  प्रार्थना  में  जुड़े l
प्रार्थना  कि  तुम्हें  राहों  पर  बस  फूल  ही  फूल  मिलें  l