एक पुराना मकान है गली किनारे ,
लाल स्याह रंग की एक गेट मानो कब से टिकी हो घर के अस्तित्व को जिन्दा रखे l
गेट के किनारों पर उग आई घास भी मुरझा गयी है l
घर के आउटहाउस में रखी बेंत की कुर्सियां थोड़ी टूटी हैं , धूल की एक चादर के आगोश में समां गयी हैं ,
दीवार घड़ी जो न जाने कब से रुकी हों , अब गौरैय्ये का बसेरा है जिनमें दो
छोटे बच्चे हैं , उनकी मधुर ध्वनि से अब भी कुछ रौनक है l
पंखे की ब्लेड पर कालिख और धूल की परत जम गयी है ,
रूम की दरारों में बारिश का पानी कुछ ऐसे टपकता है जैसे रूह की परतों से आंसू छलछला कर बाहर आ जाए l
कमरे के कोनों में सीलन ने कुछ अजीबोगरीब आकृतियाँ बना दी हैं ,
पानी की बूंदे रीस कर जब उनपर फैलती हैं तो ये अनजानी आकृतियाँ मानो जीवंत हो उठती हैं l
जमीन कुछ इंच नीचे धंस गयी है , शायद अकेलेपन का बोझ न सह सकी वो l
लटके हुए दरवाज़े आंधी में दीवार से टकराते हैं तो लगता है किसी को आवाज़ देकर पुकार रहे हों l
लाल स्याह रंग की एक गेट मानो कब से टिकी हो घर के अस्तित्व को जिन्दा रखे l
गेट के किनारों पर उग आई घास भी मुरझा गयी है l
घर के आउटहाउस में रखी बेंत की कुर्सियां थोड़ी टूटी हैं , धूल की एक चादर के आगोश में समां गयी हैं ,
दीवार घड़ी जो न जाने कब से रुकी हों , अब गौरैय्ये का बसेरा है जिनमें दो
छोटे बच्चे हैं , उनकी मधुर ध्वनि से अब भी कुछ रौनक है l
पंखे की ब्लेड पर कालिख और धूल की परत जम गयी है ,
रूम की दरारों में बारिश का पानी कुछ ऐसे टपकता है जैसे रूह की परतों से आंसू छलछला कर बाहर आ जाए l
कमरे के कोनों में सीलन ने कुछ अजीबोगरीब आकृतियाँ बना दी हैं ,
पानी की बूंदे रीस कर जब उनपर फैलती हैं तो ये अनजानी आकृतियाँ मानो जीवंत हो उठती हैं l
जमीन कुछ इंच नीचे धंस गयी है , शायद अकेलेपन का बोझ न सह सकी वो l
लटके हुए दरवाज़े आंधी में दीवार से टकराते हैं तो लगता है किसी को आवाज़ देकर पुकार रहे हों l
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