Wednesday, October 31, 2012

figments of imagination .....

एक  नज़र  हमारे   नज़रों  से  कभी -कभी  मिल  जाया  करतीं ,
आपस  में  कुछ  अनकही  बातें   हो  जाती ,
इक दिन जो करीब  सी  वो आ गयी ,
एक  चंचल  उतावलापन  हमें वो  दिखला गयी 
जैसे  वो  हमारी  ही  रह  देख  रही  थी  अब  तक  .
जैसे  कितना  कुछ  कहना  चाह  रही  हो
पर  अनजानेपन  से  कतरा  रही  हो l
वो  चुप  रहती   पर  हमें  खबरें  मिलती 
तब  क्या  होता   जब  ये  नज़रें  मिलती l
उन  नज़रों  ने  न  जाने  कितने  गीतों  को  मेरा  अपना  बनाया
कितने  धुनों  में  हमने  उनका  ख्याल  गुनगुनाया l
वो  दिन  भी  क्या  दिन  थे ,
की  हम  , हम  नहीं  थे ,
और  शायद  वो  वो  नहीं   थे ,
हर  एक  लम्हा  यादगार  था  हर  एक  लम्हा   हसीं ,
मुलाक़ात  तो  नहीं  थी , नाम  भी  अनाम  था  ,
पर  उस  अनजानेपन  से  ही  हमें  बड़ा  लगाव सा था  l
आज  यादें  वही  हैं  पर  वो  लम्हे  नहीं  हैं ,
वो  नज़रें  जाने  कहा  हैं  पर  हम  तो  वही  के  वही  हैं  !


कैसे  दो  नज़रें  मिल  जाती  है   अचानक  ही ,
और  कैसे  लोग  दूरियों   की  गहराईयों  में  कही  गुम  हो  जाते  हैं ,
 हमारी तरह  शायद  वो  भी  इसे  कोई  प्यारा  सा  ख्वाब  मानकर  ज़िन्दगी  जिए  जाते  हैं l

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